अतिक्रमण का दंश झेल रहे हैं देहरादून शहर के फुटपाथ

अतिक्रमण का दंश झेल रहे हैं देहरादून शहर के फुटपाथ

हमारी पंचायत, देहरादून
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून, जो स्मार्ट सिटी के तमगे के साथ अपनी पहचान बनाना चाहती है, आज एक गंभीर समस्या से जूझ रही है—फुटपाथों पर अतिक्रमण। शहर के फुटपाथ, जो पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक होने चाहिए, वर्षों से दुकानदारों, ठेलों और अवैध कब्जों की भेंट चढ़ गए हैं।

लाख कोशिशों के बावजूद न तो पुलिस, न प्रशासन, और न ही नगर निगम इस समस्या का स्थायी समाधान निकाल पाया है। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक नाकामी को उजागर करती है, बल्कि शहरवासियों के लिए रोजमर्रा की परेशानियों को भी रेखांकित करती है।

देहरादून में अधिकांश फुटपाथ या तो अस्तित्व में ही नहीं हैं या फिर अतिक्रमण के कारण बेकार हो चुके हैं। धर्मपुर, राजपुर रोड, आढ़त बाजार, पलटन बाजार, गांधी रोड, चकराता रोड, सहारनपुर चौक और सहारनपुर रोड जैसे प्रमुख इलाकों में फुटपाथों पर सब्जी विक्रेताओं, जंक फूड के ठेलों और व्यापारियों ने कब्जा जमा रखा है।

कई जगहों पर फुटपाथों को पार्किंग स्थल में तब्दील कर दिया गया है। नतीजा यह है कि पैदल चलने वालों, खासकर स्कूली बच्चों और बुजुर्गों को सड़कों पर चलने को मजबूर होना पड़ता है, जिससे जाम और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। बरसात के दौरान जलभराव की स्थिति में फुटपाथ पूरी तरह गायब हो जाते हैं, जिससे पैदल चलना और भी मुश्किल हो जाता है।

कुछ इलाके, जैसे धर्मपुर, इनामुल्लाह बिल्डिंग और आढ़त बाजार, फुटपाथ अतिक्रमण के मामले में विशेष रूप से संवेदनशील हैं। धर्मपुर में सब्जी की दुकानों ने फुटपाथों को पूरी तरह घेर लिया है। राज्य गठन के बाद से अब तक हजारों बार अतिक्रमण हटाने की कोशिशें हुईं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।

इनामुल्लाह बिल्डिंग में तो प्रशासन और पुलिस की हिम्मत भी जवाब देती नजर आती है। आढ़त बाजार में संकरी सड़कों के कारण अतिक्रमण से जाम की स्थिति और गंभीर हो जाती है। हालांकि, आढ़त बाजार को शिफ्ट करने की योजना की बात कही जा रही है, लेकिन इसका असर अभी तक धरातल पर नहीं दिखा।

राज्य गठन के समय देहरादून में करीब 3.5 लाख वाहन थे, जो अब बढ़कर 12 लाख से अधिक हो चुके हैं। इसके बावजूद सड़कों और फुटपाथों की लंबाई और चौड़ाई में कोई खास वृद्धि नहीं हुई। यह असंतुलन फुटपाथों पर दबाव बढ़ाता है और अतिक्रमण की समस्या को और जटिल बनाता है। माता मंदिर रोड जैसे इलाकों में फुटपाथ का नामोनिशान तक नहीं है, और बरसात में जलभराव के कारण स्कूली बच्चे और राहगीरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

सरकार और नगर निगम की ओर से फुटपाथों के सौंदर्यीकरण और सुधार के लिए लाखों रुपये खर्च किए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत सबके सामने है। प्रशासन की ओर से समय-समय पर अतिक्रमण हटाने के अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन ये अभियान केवल दिखावटी साबित हुए हैं। अतिक्रमण हटाने के कुछ घंटों बाद ही दुकानें और ठेले फिर से फुटपाथों पर सज जाते हैं। स्थानीय निवासी अर्जुन सिंह रावत जैसे लोग इस समस्या को लेकर बार-बार शिकायतें दर्ज करा चुके हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

शहरवासियों की मांग साफ है—फुटपाथों को अतिक्रमण मुक्त किया जाए, कब्जा करने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जाए, और फुटपाथों की नियमित देखरेख सुनिश्चित की जाए। फुटपाथों पर लटकते बिजली के तार, झूलती पेड़ों की टहनियां और बिखरा हुआ कचरा पैदल चलने वालों के लिए खतरा बन चुका है। सरकार को चाहिए कि वह एक स्थायी और सख्त अतिक्रमण-रोधी नीति बनाए, जिसमें नियमित निरीक्षण, भारी जुर्माना और कब्जा हटाने के लिए परमानेंट ड्राइव शामिल हों।

देहरादून के फुटपाथों की यह बदहाली केवल प्रशासन की नाकामी नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी का भी सवाल है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की पहल, जो अगले छह दिनों तक इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाएगी, एक स्वागतयोग्य कदम है। यह अभियान न केवल प्रशासन को जगाने का प्रयास है, बल्कि शहरवासियों को भी इस मुहिम में शामिल होने का आह्वान करता है।

यदि देहरादून को वास्तव में स्मार्ट सिटी बनाना है, तो फुटपाथों को अतिक्रमण मुक्त और पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित बनाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यह समय है कि प्रशासन और नागरिक मिलकर इस पुरानी समस्या का स्थायी समाधान खोजें, ताकि दून की सड़कें और फुटपाथ शहर की शान बन सकें।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *