अलकनंदा नदी के कटाव से बदरीनाथ के तप्त कुंड पर मंडराया संकट

अलकनंदा नदी के कटाव से बदरीनाथ के तप्त कुंड पर मंडराया संकट

हमारी पंचायत, देहरादून

बदरीनाथ धाम में अलकनंदा नदी के अप्रत्याशित कटाव के कारण पवित्र तप्त कुंड की सुरक्षा दीवार गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई है, जिससे इसके अस्तित्व और ऊपर स्थित चेंजिंग रूम में तीर्थयात्रियों की सुरक्षा पर तत्काल खतरा उत्पन्न हो गया है।

उच्च हिमालयी क्षेत्र में लगातार हो रही वर्षा ने अलकनंदा के जलस्तर को खतरनाक स्तर तक बढ़ा दिया है, जिससे ब्रह्मकपाल तीर्थ क्षेत्र भी जलमग्न हो गया है। स्थानीय प्रशासन ने सतर्कता बढ़ाई है, लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्काल और दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता है।

प्रमुख निष्कर्षों से पता चलता है कि तप्त कुंड की सुरक्षा दीवार संरचनात्मक रूप से कमजोर हो चुकी है और कभी भी ढह सकती है। अलकनंदा नदी का बढ़ता जलस्तर और तीव्र बहाव कटाव का मुख्य कारण है, जो उच्च हिमालयी वर्षा और क्षेत्र की भू-वैज्ञानिक संवेदनशीलता से प्रेरित है।

बदरीनाथ मास्टर प्लान के तहत चल रहे निर्माण कार्य और मलबे के अनुचित निस्तारण ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर कटाव को बढ़ाया है, जिससे पर्यावरणीय और भू-वैज्ञानिक जोखिम उत्पन्न हुए हैं।

ब्रह्मकपाल क्षेत्र का जलमग्न होना और मंदिर के सिंह द्वार में दरारें व्यापक भू-धंसाव और अस्थिरता का संकेत देती हैं। वर्तमान आपदा प्रबंधन प्रतिक्रियाएं तात्कालिक हैं, लेकिन दीर्घकालिक योजना और अंतर-एजेंसी समन्वय में कमी है।

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, तप्त कुंड की सुरक्षा दीवार और चेंजिंग रूम की तत्काल मरम्मत और सुदृढ़ीकरण के लिए आपातकालीन इंजीनियरिंग हस्तक्षेप आवश्यक है।

नदी कटाव को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए गए तटबंधों और रिवरफ्रंट संरचनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए, जिसमें भू-वैज्ञानिक स्थिरता का विशेष ध्यान रखा जाए। मास्टर प्लान के तहत चल रहे निर्माण कार्यों की पर्यावरणीय और भू-वैज्ञानिक प्रभाव आकलन के साथ गहन समीक्षा की जानी चाहिए, और मलबे के उचित निस्तारण के लिए सख्त दिशानिर्देश लागू किए जाएं।

क्षेत्र में भू-धंसाव और भूस्खलन के जोखिमों का निरंतर भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण और निगरानी महत्वपूर्ण है। अंततः, आपदा प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करना, जिसमें पूर्व-चेतावनी प्रणाली, तीर्थयात्री सुरक्षा प्रोटोकॉल और आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र शामिल हों, तथा जलागम क्षेत्र में वनीकरण और जल संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देना दीर्घकालिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।

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