देहरादून शहर में आवारा कुत्तों का आतंक, शहरवासी परेशान

देहरादून शहर में आवारा कुत्तों का आतंक, शहरवासी परेशान

हमारी पंचायत, देहरादून

देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, इन दिनों एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। शहर की सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्तों का आतंक दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। शहरवासी, खासकर बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं, इन कुत्तों के हमलों से डर के साए में जी रहे हैं।

सुबह की सैर हो या शाम की टहलनी, हर कदम पर खतरा मंडरा रहा है। हाल के महीनों में कुत्तों के काटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, जिससे रेबीज जैसी घातक बीमारी का खतरा भी बढ़ गया है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक उत्तराखंड में 18,000 से अधिक कुत्तों के काटने के मामले दर्ज हो चुके हैं, और देहरादून शहर इसमें बड़ा हिस्सा रखता है।

लेकिन सवाल यह है कि देहरादून में कुल आवारा कुत्तों की संख्या कितनी है? विभिन्न सर्वे और अनुमानों के आधार पर यह संख्या 45,000 से 50,000 के बीच है, जो शहर की आबादी के अनुपात में काफी अधिक है।

देहरादून की आबादी 2025 में लगभग 10 लाख 41 हजार पहुंच गई है, और अगर प्रति 100 लोगों पर 3.5 कुत्तों का अनुपात देखें तो यह संख्या 36,000 के करीब बैठती है। लेकिन हालिया रिपोर्ट्स में यह स्पष्ट है कि नशबंदी प्रयासों के बावजूद कुत्तों की संख्या में वृद्धि हो रही है। 2016 में ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल (HSI) के सर्वे में देहरादून में आवारा कुत्तों की संख्या 20,078 अनुमानित थी।

उस समय शहर की आबादी करीब 7 लाख थी, और कुत्तों का घनत्व 10.56 प्रति किलोमीटर सड़क था। लेकिन शहर के विस्तार और शहरीकरण के साथ यह समस्या जटिल हो गई है। 2020 तक घनत्व में 32% की कमी आई थी, लेकिन 2019 के पशु जनगणना में 23,393 कुत्ते दर्ज थे, जो 2023 तक 20% बढ़कर करीब 28,000 हो गए।

आवारा कुत्तों के कारण शहरवासियों का जीवन दूभर हो गया है। हाल ही में जुलाई 2025 में, एक नगर पार्षद की बेटी को सुबह की सैर के दौरान छह आवारा कुत्तों ने घेर लिया और बुरी तरह घायल कर दिया। यह घटना रायपुर क्षेत्र में हुई, जहां कुत्तों का झुंड अक्सर लोगों पर हमला करता है। इसी तरह, हरिद्वार जिले में एक व्यक्ति को कुत्ते के काटने से रेबीज हो गया और तीन महीने बाद उसकी मौत हो गई।

देहरादून में भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, 2023 में 25,000, 2024 में 23,000 और इस साल अब तक 18,000 कुत्तों के काटने के केस दर्ज हुए हैं। इनमें से अधिकांश देहरादून, हरिद्वार और नैनीताल जैसे जिलों से हैं। रेबीज के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है, जहां 36% रेबीज मौतें होती हैं।

शहरवासियों की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। राजपुर रोड, सहारनपुर रोड, मसूरी रोड और डालनवाला जैसे इलाकों में कुत्तों के झुंड रात को सड़कों पर कब्जा जमाते हैं। एक स्थानीय निवासी, राहुल शर्मा, जो क्लॉक टावर के पास रहते हैं, कहते हैं, “हर शाम बच्चे पार्क में खेलने जाते हैं, लेकिन कुत्तों के डर से हम उन्हें घर से बाहर नहीं निकालते।

पिछले महीने मेरे पड़ोसी को कुत्ते ने काटा, और अब वह एंटी-रेबीज इंजेक्शन ले रहे हैं।” इसी तरह, बुजुर्ग महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। जुलाई में जैखन क्षेत्र में 75 वर्षीय कौशल्या देवी पर दो रॉटवाइलर कुत्तों ने हमला किया, हालांकि वे पालतू थे, लेकिन यह घटना आवारा कुत्तों की समस्या को उजागर करती है। उन्हें 200 टांके लगे और हड्डियां टूट गईं।

आवारा कुत्तों की समस्या के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है नशबंदी कार्यक्रम की धीमी गति। देहरादून नगर निगम ने जून 2023 तक 40,533 कुत्तों की sterilization की थी, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। राज्य में केवल चार जिलों में यह कार्यक्रम चल रहा है।

शहर में लोग कुत्तों को खाना खिलाते हैं, जो उनकी संख्या बढ़ाने में मदद करता है। इसके अलावा, शहर के विस्तार से कूड़े-कचरे की मात्रा बढ़ी है, जो कुत्तों के लिए भोजन स्रोत बन गया है।

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नशबंदी 80% से ऊपर हो जाए, तो संख्या स्वाभाविक रूप से कम हो सकती है, जैसा लखनऊ और वडोदरा में हुआ है। लखनऊ में 2019 से 84% कुत्तों की नशबंदी हुई, और संख्या में कमी आई। देहरादून में भी 2016 से 40% कमी आई है, लेकिन हालिया अनुमान इससे मेल नहीं खाते।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 22 अगस्त 2025 को एक फैसले में स्थानीय निकायों को आवारा कुत्तों को शेल्टर में ले जाने और ABC नियमों का पालन करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि देहरादून और लखनऊ जैसे शहरों में आक्रामक नशबंदी से संख्या में कमी आई है। 2024 में भारत में 37 लाख से अधिक कुत्तों के काटने के मामले दर्ज हुए, और कई मौतें हुईं। सरकार ने Animal Birth Control Rules, 2023 लागू किए हैं, जिसके तहत स्थानीय निकायों को कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रित करनी है।

देहरादून नगर निगम अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नशबंदी बढ़ाने की योजना बना रहा है। मेयर सौरभ थपलियाल ने कहा, “हमारे पास सटीक डेटा नहीं है, लेकिन अनुमानित 50,000 कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए नए सेंटर खोलेंगे।” एनजीओ और लोकल एनिमल वेलफेयर ग्रुप्स कम्युनिटी एंगेजमेंट पर जोर दे रहे हैं।

एक एनजीओ कार्यकर्ता, प्रिया सिंह, कहती हैं, “कुत्तों को मारना समाधान नहीं है। CNVR (Catch, Neuter, Vaccinate, Release) मॉडल से लखनऊ में सफलता मिली, जहां 84% कुत्ते नशबंदी हैं। देहरादून में भी फीमेल डॉग्स पर फोकस करके हम संख्या कम कर सकते हैं।”

शहरवासियों का कहना है कि सरकार और नगर निगम को तुरंत कदम उठाने चाहिए। स्कूलों के आसपास कुत्तों के झुंड बच्चों के लिए खतरा हैं। एक स्कूल प्रिंसिपल, अनिता मेहता, कहती हैं, “हमारे स्कूल में रोज कुत्ते घुस आते हैं। अभिभावक शिकायत करते हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं।” स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर समस्या नहीं सुलझी तो रेबीज के मामले बढ़ सकते हैं। भारत में सड़क कुत्तों की कुल संख्या 6.2 करोड़ है, और देहरादून जैसे शहर इसमें योगदान दे रहे हैं।

समाधान के रूप में, विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि कम्युनिटी फीडिंग को रेगुलेट किया जाए, कुत्तों का टीकाकरण किया जाए, और पब्लिक अवेयरनेस कैंपेन चलाए जाएं। वडोदरा में 80% सफलता मिली। देहरादून में भी अभय संकल्प अप्रोच से कम्युनिटी को शामिल करके CNVR लागू किया जा सकता है। अगर ये कदम उठाए गए तो शहरवासी राहत की सांस ले सकेंगे।

अंत में, देहरादून में आवारा कुत्तों की समस्या एक मानवीय और पशु कल्याण का मुद्दा है। कुल संख्या 50,000 होने का अनुमान है, लेकिन सटीक सर्वे की जरूरत है। सरकार, एनजीओ के सहयोग से ही इस आतंक को रोका जा सकता है। अन्यथा, शहर की शांति भंग होती रहेगी।

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