उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव बना पहेली

उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव बना पहेली

हमारी पंचायत, देहरादून

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव एक अबूझ पहेली बन गए हैं। कभी सरकार तो कभी राज्य चुनाव आयोग के कारण बार -बार आगे खिसकने के बाद बमुश्किल चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई तो प्रदेश हाई कोर्ट में दो मतदाता सूची वाली एक याचिका ने फिर चुनावी प्रक्रिया को पसोपेश में दाल दिया है।

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दृष्टिगत नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग असमंजस में है। राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में निर्वाचन से जुड़े बिंदुओं को लेकर विधिक परीक्षण कराया जा रहा है।

काबिलेगौर है कि पंचायत चुनाव की प्रक्रिया दो जुलाई को नामांकन पत्र दाखिल करने के साथ शुरू हुई थी। इसके बाद सात से नौ जुलाई तक नामांकन पत्रों की जांच हुई। 10 व 11 जुलाई को नाम वापसी भी हो चुकी है। इस बीच पंचायतों की मतदाता सूची को लेकर भी प्रश्न उठे। बात सामने आई कि कई व्यक्तियों के नाम पंचायत और शहरी निकायों की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने पूर्व के निर्णय में किसी तरह के बदलाव से इन्कार करते हुए मौखिक तौर पर साफ किया कि कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, केवल आयोग के 6 जुलाई के सर्कुलर पर रोक लगाई है।

11 जुलाई को पारित आदेश पंचायती राज अधिनियम के अनुसार है, इसलिए आयोग अधिनियम के अनुपालन को स्वयं जिम्मेदार है। आयोग के अधिवक्ता संजय भट्ट के अनुसार कोर्ट के रुख के बाद अब चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है।

रविवार को आयोग को ओर से प्रार्थना पत्र दाखिल कर कहा गया है कि हाई कोर्ट के ग्रामीण व शहरी मतदाता सूची दोनों मतदाता सूचियों वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर रोक के निर्णय से पूरी चुनाव प्रक्रिया गड़बड़ा गई है।

आयोग प्रक्रिया में संसाधन खर्च कर चुका है। यदि रोक नहीं हटी तो इससे चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ने में बाधा पैदा हो गई है। कोर्ट के आदेश से चुनाव प्रक्रिया रुक गई है, इसलिए रोक हटाई जाए।

उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने रुद्रप्रयाग निवासी सतेंद्र सिंह बर्थवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए दो मतदाता सूची वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।

याचिकाकर्ता का कहना था कि पंचायत राज अधिनियम की धारा 9 की उपधारा 6 में साफ उल्लेख है कि एक व्यक्ति एक से अधिक मतदाता सूची में शामिल व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता।

आयोग ने नियम विरुद्ध जाकर सर्कुलर जारी कर ऐसे प्रत्याशियों के नामांकन पत्र स्वीकार कर लिए। प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर रिटर्निंग अधिकारियों ने दो मतदाता सूची में नाम वाले प्रत्याशियों के नामांकन पत्रों के मामले में अलग अलग मत दिए हैं। कहीं नामांकन खारिज कर दिए तो कहीं स्वीकार किये गए।

इसके अलावा एक पक्ष और भी है कि जो प्रत्याशी निर्विरोध चुनलिये गए हैं उनका क्या भविष्य होगा। जबकि नामांकन के दौरान उनकी उम्मीदवारी को मंज़ूर किया गया और नामवापसी पर भी पीठासीन अधिकारी द्वारा निर्विरोध की पर्ची भी दी गयी है।

ऐसे में सवाल उठता है कि चुनाव परिणाम के बाद क्या उन्हें प्रमाणपत्र मिलेगा या नहीं ? जबकि वे सभी प्रत्याशी राज्य चुनाव आयोग के नियमानुसार ही अपना कार्य कर रहें हैं।

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