हमारी पंचायत, शिमला
हिमाचल प्रदेश पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। इस साल दिसंबर में कभी भी इन चुनावों की घोषणा हो सकती है।ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस बार चुनाव में उन लोगों के लिए बुरी खबर है, जिन्होंने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया है। ऐसे लोग पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।

पंचायती राज विभाग ने स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करने वाला कोई भी व्यक्ति चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकता।इसके अलावा, जिन लोगों पर पंचायत या सहकारी समितियों (कोऑपरेटिव सोसायटी) की देनदारी बकाया हैं। वो भी चुनाव लड़ने के पात्र नहीं होंगे. पहली बार सहकारी समितियों की देनदारी को अयोग्यता का आधार बनाया गया है।
साथ ही, अदालत द्वारा अपराधी घोषित व्यक्ति भी पंचायती राज चुनाव नहीं लड़ सकेगा। पंचायती राज विभाग के अतिरिक्त निदेशक केवल शर्मा ने कहा, “अवैध कब्जा करने वाला कोई भी व्यक्ति पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लड़ने के योग्य नहीं होगा। इसके अलावा, पंचायत या सहकारी समिति की देनदारी बकाया होने पर भी उम्मीदवारी मान्य नहीं होगी।“
हिमाचल में 3,577 पंचायतें
हिमाचल में पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल इस साल समाप्त हो रहा है. ऐसे में चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। वर्तमान में जिला परिषद के कुल वार्डों की संख्या 249 है, लेकिन सरकार ने एक नया जिला परिषद वार्ड बनाने की घोषणा की है। इससे अब जिला परिषद वार्डों की संख्या 250 हो जाएगी।
इसके अलावा, 10 नए विकासखंड बनने से अब प्रदेश में विकासखंडों की कुल संख्या 91 हो गई है। हालांकि, नए नगर निगम और नगर पंचायतों के गठन के कारण कई पंचायतों को इनमें शामिल कर लिया गया है। परिणामस्वरूप, प्रदेश में पंचायतों की संख्या 3,616 से घटकर 3,577 रह गई है।
30 जून तक डिलिमिटेशन
हिमाचल प्रदेश राज्य चुनाव आयोग के आयुक्त अनिल कुमार खाची ने सरकार से 30 जून तक परिसीमन (डिलिमिटेशन) की प्रक्रिया पूरी करने का आग्रह किया है. इससे साल के अंत में प्रस्तावित पंचायती राज चुनावों की तैयारियां समय पर पूरी हो सकेंगी. संभावना है कि दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में चुनाव की घोषणा हो सकती है. पिछली बार 21 दिसंबर, 2020 को चुनाव की घोषणा हुई थी, जिसके बाद 17, 19 और 21 जनवरी, 2021 को तीन चरणों में मतदान हुआ था.
प्रधान पद के लिए सबसे ज्यादा दावेदारी
हिमाचल में पंचायती राज चुनावों में लोगों की सबसे ज्यादा रुचि रहती है। आम जनता पंचायत प्रतिनिधियों को चुनने के लिए उत्साहपूर्वक हिस्सा लेती है. इन चुनावों को लेकर कई महीने पहले से ही सियासी हलचल शुरू हो जाती है। चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग पंचायत स्तर पर लोगों से संपर्क बढ़ाने में जुट जाते हैं। खासकर पंचायत का प्रधान और उपप्रधान बनना प्रतिष्ठा और प्रभाव का प्रतीक माना जाता है।

यही कारण है कि सबसे ज्यादा लोग इन पदों के लिए दावेदारी पेश करते हैं। प्रधान का पद न केवल सम्मानजनक होता है, बल्कि इससे सामाजिक प्रभाव भी बढ़ता है। प्रधान को गांव के विकास कार्यों, योजनाओं और संसाधनों के वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है, जिससे उसे निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त होता है। इसके अलावा, यह पद स्थानीय राजनीति में पहला कदम माना जाता है। कई लोग इसे विधायक या सांसद बनने की सीढ़ी के रूप में देखते हैं।
स्थानीय स्वशासन की इकाई है पंचायती राज व्यवस्था
भारत में पंचायती राज संस्थाओं को देश की सबसे छोटी संसद माना जाता है. ये भारत में स्थानीय स्वशासन की एक त्रिस्तरीय प्रणाली है. इसके तहत ग्राम पंचायत (गांव स्तर), पंचायत समिति (ब्लॉक स्तर), और जिला परिषद (जिला स्तर) शामिल हैं. ये प्रणाली 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से स्थापित की गई थी और इसे 1992 में लागू किया गया था. हर पांच साल में पंचायती राज चुनाव करवाए जाते हैं.
कौन लड़ सकता है चुनाव?
- ग्राम पंचायत के लिए प्रधान, उपप्रधान और वार्ड सदस्यों के चुनाव होते हैं. प्रधान और उपप्रधान का चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी जताने वाला व्यक्ति संबंधित पंचायत का वोटर होना जरूरी है। इसी तरह से संबंधित पंचायत का वोटर अपने वार्ड से सदस्य का चुनाव लड़ सकता है।
- पंचायत समिति का चुनाव लड़ने वाला दावेदार संबंधित ब्लॉक के तहत किसी भी पंचायत का वोटर होना चाहिए।
- जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए दावेदार उस जिला परिषद वार्ड का वोटर होना चाहिए।
- पंचायतीराज संस्थाओं का चुनाव लड़ने किए उम्मीदवार की आयु 21 साल होनी चाहिए।
- पंचायतीराज संस्थाओं का वार्ड सदस्य, उप प्रधान, प्रधान, पंचायत समिति सदस्य व जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता का कोई मापदंड तय नहीं है। निरक्षर व्यक्ति भी पंचायतीराज संस्थाओं का चुनाव लड़ सकता है।