हमारी पंचायत, देहरादून
उत्तराखंड के ऊर्जा क्षेत्र में एक बार फिर विवादों का दौर शुरू हो गया है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम (यूजेवीएनएल) और उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के बीच वॉटर टैक्स को लेकर तनातनी बढ़ती जा रही है। यह विवाद न केवल विभागीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है, बल्कि जनता और विपक्ष के लिए भी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने का मौका बन गया है।
उत्तराखंड के गठन के 25 साल बीत जाने के बावजूद राज्य ‘ऊर्जा प्रदेश’ बनने का सपना पूरा नहीं कर सका। ऊर्जा विभाग से जुड़े दो प्रमुख संस्थान, यूजेवीएनएल और यूपीसीएल, आपसी विवादों में उलझे हुए हैं। इस बीच, विभागीय इंजीनियरों और कर्मचारियों के वरिष्ठता व प्रमोशन से जुड़े मुद्दों ने भी आंदोलन का रूप ले लिया है। कर्मचारी सड़कों पर उतर आए हैं, जबकि दोनों संस्थान करोड़ों रुपये के टैक्स को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त हैं।
जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यूजेवीएनएल, यूपीसीएल और सिंचाई विभाग के बीच वॉटर टैक्स को लेकर चल रहा विवाद लगातार गहराता जा रहा है। नेगी ने आरोप लगाया कि सभी विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी थोपकर अपनी जवाबदेही से बच रहे हैं। यूजेवीएनएल, सिंचाई विभाग के पानी का उपयोग कर विद्युत उत्पादन करता है, जिसके लिए उसे वॉटर टैक्स देना होता है।
लेकिन कई वर्षों से लगभग 548 करोड़ रुपये का टैक्स बकाया होने के कारण सिंचाई विभाग ने यूजेवीएनएल की रिकवरी सर्टिफिकेट (आरसी) काट दी है। इस कार्रवाई से नाराज यूजेवीएनएल ने अपनी नाकामी का ठीकरा यूपीसीएल पर फोड़ा है। यूजेवीएनएल का दावा है कि यूपीसीएल पर उसका 2800 करोड़ रुपये बकाया है, जिसमें वॉटर टैक्स, सेस और रॉयल्टी शामिल हैं।
“पानी का उपयोग यूजेवीएनएल करता है, इसलिए टैक्स की जिम्मेदारी भी उसी की है। लेकिन इस आपसी खींचतान में सरकार का समय और संसाधन दोनों बर्बाद हो रहे हैं।” उन्होंने सरकार से इस मुद्दे पर तत्काल हस्तक्षेप कर समाधान निकालने की मांग की है। विपक्ष ने भी इस विवाद को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर निशाना साधा है।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि ऊर्जा क्षेत्र में व्याप्त अव्यवस्था और विभागीय तनाव सरकार की विफलता का प्रतीक हैं। इस बीच, ऊर्जा विभाग के आला अधिकारी इस विवाद को सुलझाने में नाकाम रहे हैं। कर्मचारियों के आंदोलन और विभागीय विवादों के बीच उत्तराखंड का ‘ऊर्जा प्रदेश’ बनने का सपना अधर में लटकता नजर आ रहा है।