महासू देवता का क्षेत्र सिर्फ जौनसार बावर नहीं बल्कि हिमाचल सिरमौर शिमला से लेकर टिहरी गढ़वाल के जौनपुर ब्लॉक उत्तरकाशी रंवाई के ठकराल पट्टी तक फैला हुआ है। रंवाई क्षेत्र में महाराज को राजा रघुनाथ रूप में पूजा जाता है इसमें कोई दो राय नहीं है क्योंकि महासू देवता को रघुनाथ से भी संबोधित किया जाता है।
मुलुकपति राजा रघुनाथ महासू बनाल – रंवाई घाटी मे सर्वप्रथम जेष्ठ महासू पट्टी बनाल में पूजित है, जोकि बनाल और सेराईं पट्टी के 65-70 गांव के आराध्य है। रंवाई घाटी का सबसे बड़ा राजकीय मेला महासू देवता के देवलांग पर्व को पट्टी बनाल में ही आयोजित किया जाता है। बनाल में रघुनाथ जी के मूल पुजारी भी हुणाभाट के वंशज सेमवाल लोग हैं जो कि मैन्द्रथ बावर से पुजेली बनाल में महाराज के साथ आए थे। गौरतलब है कि महासू ऐतिहासिकी में हुणाभाट ही वह ब्राह्मण था जिसने रघुनाथ जी की आराधना करके कश्मीर से महासू महाराज को मेंद्रथ बुलाया था। मुलुकपति रघुनाथ जी बनाल क्षेत्र के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो कभी नृत्य नहीं करते एवं इनकी पालकी सिर्फ केदारनाथ व रहस्यमयी मड़केश्वर बनाल में ही नमन करती है।
राजा रघुनाथ महासू गंगटाड़ी ठकराल
लोक कथाओं के अनुसार जब महासू महाराज का बनाल क्षेत्र में आगमन हुआ तो उनके साथ उनके भ्राता को बाद में महाराज ने ठकराल पट्टी का क्षेत्र दिया था, यहां पर क्षेत्रवासियों के अनुसार गंगटाड़ी मंदिर मे बोठा महासू विराजमान हैं। इस मणपा थोक के तकरीबन 5- 7 गांव के लोग महाराज को पूजते हैं। सेमवाल लोग यहां के भी पुजारी हैं। पालगी मे जो महाराज विराजते हैं उनका संबंध कुथनोर मानसिर देवता से बताया जाता हैं। जब भी यहाँ पर रघुनाथ जी बनाल का आगमन होता है तो मंदिर मे विराजमान महासू देवता अपने बड़े भाई से मिलन के लिए शक्ति रूप में पाल्गी मे विराजते हैं।

महासू देवता का क्षेत्र सिर्फ जौनसार बावर नहीं बल्कि हिमाचल सिरमौर शिमला से लेकर टिहरी गढ़वाल के जौनपुर ब्लॉक उत्तरकाशी रंवाई के ठकराल पट्टी तक फैला हुआ है। रंवाई क्षेत्र में महाराज को राजा रघुनाथ रूप में पूजा जाता है इसमें कोई दो राय नहीं है क्योंकि महासू देवता को रघुनाथ से भी संबोधित किया जाता है।
मुलुकपति राजा रघुनाथ महासू बनाल – रंवाई घाटी मे सर्वप्रथम जेष्ठ महासू पट्टी बनाल में पूजित है, जोकि बनाल और सेराईं पट्टी के 65-70 गांव के आराध्य है। रंवाई घाटी का सबसे बड़ा राजकीय मेला महासू देवता के देवलांग पर्व को पट्टी बनाल में ही आयोजित किया जाता है। बनाल में रघुनाथ जी के मूल पुजारी भी हुणाभाट के वंशज सेमवाल लोग हैं जो कि मैन्द्रथ बावर से पुजेली बनाल में महाराज के साथ आए थे। गौरतलब है कि महासू ऐतिहासिकी में हुणाभाट ही वह ब्राह्मण था जिसने रघुनाथ जी की आराधना करके कश्मीर से महासू महाराज को मेंद्रथ बुलाया था। मुलुकपति रघुनाथ जी बनाल क्षेत्र के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो कभी नृत्य नहीं करते एवं इनकी पालकी सिर्फ केदारनाथ व रहस्यमयी मड़केश्वर बनाल में ही नमन करती है।
राजा रघुनाथ महासू गंगटाड़ी ठकराल
लोक कथाओं के अनुसार जब महासू महाराज का बनाल क्षेत्र में आगमन हुआ तो उनके साथ उनके भ्राता को बाद में महाराज ने ठकराल पट्टी का क्षेत्र दिया था, यहां पर क्षेत्रवासियों के अनुसार गंगटाड़ी मंदिर मे बोठा महासू विराजमान हैं। इस मणपा थोक के तकरीबन 5- 7 गांव के लोग महाराज को पूजते हैं। सेमवाल लोग यहां के भी पुजारी हैं। पालगी मे जो महाराज विराजते हैं उनका संबंध कुथनोर मानसिर देवता से बताया जाता हैं। जब भी यहाँ पर रघुनाथ जी बनाल का आगमन होता है तो मंदिर मे विराजमान महासू देवता अपने बड़े भाई से मिलन के लिए शक्ति रूप में पाल्गी मे विराजते हैं।