प्रतिवर्ष श्रावण मास प्रविष्टे 25 को होती है देव फुलवारी ‘कुंगवाड़’ की खुदाई
सर्दी में खिलते हैं हनोल मंदिर में नरगिस के फूल
हमारी पंचायत, हनोल
महासू देवता देवभूमि उत्तराखंड और हिमाचल के आराध्य देव हैं। पहाड़ों में सबसे पहले महासू देवता का ही वर्चस्व था। उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर, बंगाण, फते पर्वत, रंवाई के तथा हिमाचल के किन्नौर, शिमला, सोलन, सिरमौर के अलावा कुल्लू और मंडी में भी महासू देवता का भक्त हैं। सैंकड़ों मंदिर और देवठियाँ बनाई गई हैं जहाँ महासू देवता की पूजा होती है। एक समय में सतलुज से गंगा के बीच का क्षेत्र क्षेत्र महासू परगना कहलाता था।

महासू देवता से सम्बंधित बहुत रहस्य है जिनमें कुछ अद्भुत है। इनमें एक है महासू देवता की फुलवारी जिसे स्थानीय बोली में कुंगवाड़ कहते है। सदियों से यहाँ नरगिस के फूल खिलते हैं जिन्हें नगरास के फूल कहा जाता है। मूलतः कश्मीर श्रीनगर में पैदा होने वाला यह फूल देवभूमि में सिर्फ महासू मंदिर हनोल और महासू मंदिर मैंद्रथ की फुलवारी कुंगवाड़ में ही उगते हैं।
नरगिस के पौधों को उगाने के लिए बीज एवं बल्ब दोनों में से किसी का भी उपयोग किया जाता है लेकिन सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल में सिर्फ फुलवाड़ी की खुदाई कर सैकड़ों वर्षों से उग रहे नरगिस /नगरास फूलों की भव्यता विख्यात है। यहां करीब चार माह तक खिलने वाले इस सुगंधित फूल का देव पूजा में विशेष महत्व है। देवता की फुलवारी में चार माह तक खिलने वाले इस सुगंधित फूल का देव पूजा में विशेष महत्व है। यहां के देव फुलवारी की कहानी बेहद रोचक है। क्षेत्रीय लोग इसे देवता का चमत्कार मानते हैं।

महासू मंदिर की देव फुलवारी कुंगवाड़ में इन फूलों के उगने की कहानी काफी रोचक है। किवदंति है कि सैकड़ों वर्ष पहले महासू मंदिर हनोल के देव फुलवारी की खुदाई एक जंगली जानवर रात में आकर करता था। प्रतिवर्ष सावन मास के 25 गते की रात को ये जंगली जानवर हनोल मंदिर के देव फुलवारी को रातोंरात अपने पंजों से खोदकर सुबह होने से पहले गायब हो जाता था। गांव के लोग जब सुबह उठते थे तो देव फुलवारी की खुदाई देख हैरान रह जाते। बताते हैं यहां की खुदाई का ये सिलसिला कई वर्षों तक यूं ही चलता रहा।
जनश्रुति के अनुसार स्थानीय तांदूर मुहासों ने इसकी जासूसी करना शुरू कर दी।
सावन मास के 25 गते की रात्रि को तांदूर मुहासे हथियारों से लैस होकर मंदिर के पास घात लगाकर बैठे रहे। तभी जंगली सुअर आकर पंजों से देव फुलवारी की खुदाई करने लगा। तांदूर मुहासों ने जंगली जानवर पर हमला बोल उसे मार गिराया, जिससे कई वर्षों तक देव फुलवारी की खुदाई नहीं होने से फूल नहीं उग पाए। परिणाम स्वरुप देवता का दोष तांदूर मुहासों को झेलना पड़ा। दोषमुक्त होने के लिए तांदूर मुहासों ने महासू देवता की शरण में आकर फरियाद की।

कहते हैं देवता ने उन्हें सिर्फ एक शर्त पर माफी दी कि जंगली जानवर के बजाय अब तांदूर मुहासे फावड़े-कुदाल से उसी तिथि को देव फुलवारी की खुदाई करेंगे। देवता के कहे अनुसार तांदूर मुहासे दोष से बचने के लिए हर साल 25 गते सावन मास को अपने घरों से फावड़े-कुदाल लेकर और महासू पुजारियों के गांव चातरा के ग्रामीणों को साथ लेकर देव फुलवारी की खुदाई करने हनोल मंदिर आते हैं, जहां
करीब एक बीघा जमीन की खुदाई करने में जुटे 15 से 20 लोगों को फुलवारी खोदने में कई घंटे लगते हैं। खुदाई के बाद महासू मंदिर की देव फुलवाड़ी में अक्टूबर से जनवरी माह के बीच सफेद व हल्के पीले रंग के सुगंधित नगरास के फूल उगते है। मंदिर के पुजारी पंडित राजेन्द्र नौटियाल ने बताया कि देव फुलवारी के खुदाई की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।
यहां हर वर्ष सावन मास के 25 गते को देव फुलवारी की खुदाई होने के बाद अक्टूबर से नगरास के फूल उगने शुरू होते हैं, जिसकी पातरी (देव पूजा में चढ़ाई जाएं वाली पत्तियां) तीन माह तक हर दिन मंदिर में शाम को होने वाली चौथे पहर की मुख्य पूजा में चढ़ती है। बिना बीज-पौध लगाए नगरास के सुगंधित फूल खिलने को लोग महासू देवता का दैविक चमत्कार मानते हैं।