हमारी पंचायत, कांगड़ा
जिला कांगड़ा के विकास खंड फतेहपुर के प्रधानों और उपप्रधानों की बैठक लोक निर्माण विश्राम गृह फतेहपुर में वीरवार को हुई। बैठक में सरकार की ओर से इस वित्त वर्ष पंचायतों में विकास कार्यों के लिए निकाले गए टेंडरों के ब्लॉक स्तर पर करवाने की अधिसूचना का विरोध किया गया।

बैठक में बीपीएल सर्वे पर भी सवाल उठाए। नंगल और सुनहरा के बीडीसी जतिंद्र सिंह ने कहा कि पंचायतों के विकास कार्यों के लिए रेत, बजरी, ईंट, पत्थर सहित शटरिंग सभी प्रकार की सामग्री के टेंडर संबंधी शक्तियां पंचायत अधिनियम के अनुसार केवल पंचायतों के पास हैं।
सरकार की ओर से यह प्रक्रिया ब्लॉक स्तर पर करना उचित नहीं हैं और जो शर्त सरकार ने लगाई है कि वेंडर की वार्षिक टर्नओवर एक करोड़ की होनी चाहिए। यह ग्रामीण स्तर पर 1000-1500 की आबादी वाले क्षेत्रों में नहीं होती, क्योंकि ये क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र हैं। इनमें एक करोड़ की टर्नओवर होने की शर्त न्यायसंगत नहीं है।
वहीं, ग्राम पंचायत मिनता के प्रधान सुशील ने कहा कि दो साल पहले ब्लॉक स्तर पर पंचायतों में सोलर लाइटें लगाने के लिए ई-टेंडर के माध्यम से टेंडर हुए थे। इसमें 18-19 लाख रुपये एक हिम ऊर्जा कंपनी को दिया गया था, वे लाइटें अभी तक नहीं लगीं तो पंचायत में यह वेंडर कैसे मैटीरियल पहुंचाएंगे।
हाडा पंचायत प्रधान सुशील कालिया ने कहा कि यदि आईआरडीपी का सर्वे कमेटी की ओर से किया जाना है, तो ग्राम सभा की बैठकें प्रधानों की अध्यक्षता में न करवाई जाएं। वहीं, जो नाम काटने अथवा डाले जाने हैं, उसमें कमेटी खुद फैसला ले और प्रधानों को इससे दूर रखा जाए।
उन्होंने कहा कि अगर प्रधानों के पास इसका अधिकार नहीं दिया जाता है तो इन ग्राम सभाओं में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि पहले विज्ञापन के माध्यम से पंचायत में टेंडर लगाए जाते थे। अब सरकार ब्लॉक स्तर पर यह कार्य कर रही है।
सभी पंचायत प्रतिनिधियों ने सरकार से मांग की है कि अधिसूचना को शीघ्र रद्द किया जाए।
पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों में भी पंचायतों के अंदर ठेकेदारों से कार्य करवाने का कोई प्रावधान नहीं है। साथ ही डीएससी (डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट) के माध्यम से होने वाली अदायगियों का भी विरोध किया।
उन्होंने सरकार से ई-टेंडरिंग के निर्णय को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि इस निर्णय काे वापस नहीं लिया तो पंचायत प्रतिनिधियों के आक्रोश का सामना सरकार को करना पड़ेगा।